श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज जी सिमरन के अंतर्गत समझाते हैं
|| सिमरन से आंतरिक लाभ ||
सिमरन बहुत अच्छी चीज़ है ! अधिक सिमरन से शरीर शब्दमय हो जाता है ! राम - नाम का सिमरन रग-रग में बस जाता है - जैसे कोरे घड़े में तेल ! मनुष्य की रग-रग में निवास हो जाता है ! क्रोध और जितने दुर्गुण है, वे आप ही समाप्त हो जाते है ! तो सिमरन बड़ा सहायक है ! कदाचित कोई दुर्गुण है, तो उसे अज्ञात रूप में दूर करता है !
दुष्ट संस्कारों को निकलने का सहज साधन केवल सिमरन है ! वह कम-कम होते जाते है ! जब नाम अधिक निवास कर लेता है, तो वासनाये दुर्बल होती जाती है और शुद्ध भावना पैदा होती है ! बुराइयों से आप ही आदमी ठीक हो जाता है !
सिमरन से आंतरिक लाभ - प्रवचन पियूष जी से Simran Se Aantrik Labh - Pravachan Piyush ji se |
जो शुभ अंदर से जागता है, वह है ठहरने वाली चीज ! बाहर की बनावट नहीं ठहरती !
जो चाहता है की मेरा जीवन अच्छा हो, तो वह खूब सिमरन करे !
मुझे ऐसे सज्जन मिले है जिन में रोना-धोना बहुत हो, जिन्हें इसी कारण खाना पचता नहीं ! उनके पूछने पर मैंने दुःख निवारण की विधि सिमरन की बतलाई ! सप्ताह भर में सिमरन से वियोग समाप्त हो जाता है ! जो लोग बहुत देर तक इस प्रकार वियोग में रहते है उनके मस्तक में बल नहीं रहता ! सिमरन का साधन ठीक प्रकार किया हो, तो वे ठीक हो जाते है !
आदमी कदाचित दुःख से चूर-चूर हो रहा हो, यदि वह उस समय नाम का सिमरन करे, तो उसका मस्तक ठीक हो जाता है !
जैसे पवन से बदल भाग जाते है, ऐसे है सिमरन घबराहट को दूर करता है ! सिमरन करने वाले में चुपचाप ऐसा बल-सा आता है की उसका मानस-बल बढ़ जाता है ! जिस काम में वह हाथ डालता है, वह सफल होता है ! उसमे सभी प्रकार का बल बढ़ता है !
लाभ तो भावना-सहित सिमरन करने से होता है ! वह तो बड़ा कोमल हो जाता है ! फूल की भाँती उसके मस्तक में खिलावट आ जाती है ! उसका अंदर जाग्रत होता है और अंदर जाग्रत होने से ही जीवन बनता है और अंदर जाग्रत, सिमरन से होता है
सिमरन से अच्छाई आती हैं, सेवा-भाव आता हैं ! रात को नींद न आना, स्वप्न अधिक आना आदि के सब कांटे सिमरन करने वाले के दूर हो जाते हैं ! सिमरन से ध्यान में बड़ी सहायता मिलती हैं, क्योंकि इससे बुरे संस्कार अंदर से निकल जाते हैं ! यह सिमरन का माहात्म्य बताया हैं ! मैं यह भी अवश्य बताऊंगा कि यदि भावना सहित सिमरन हो, तो फिर राम-कृपा हो जाये, नहीं तो उत्तरदायित्व वाली बात नहीं !
कहने का तात्पर्य यह हैं कि खूब समझ कर, भावना सहित सिमरन अधिक करो !
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