सजगता
जैसे गाड़ी चलाने वाला पथ पर दृष्टि रखता है, वैसे ही हमारी दृष्टि वृत्तियों पर होनी चाहिये | बुद्धि की विवेकवती-वृत्ति मार्ग पर रहनी चाहिये| यदि वह कभी मार्ग से गिर हो जाये, तो विचारना चाहिये की ऐसा क्यों हुआ ? दृष्टि ही ऐसी बना लाइन चाहिये की बिना विचारे ही अपने आप पता लग जाये की ऐसा क्यों हुआ ? इससे यह अपराध को ऐसे ही दिखा देगी, जैसे लैम्प चीज़ को दिखा देता है ! जो चीज़े संयम को बिगाड़ती है, उनके आगे दीवार खड़ी करनी चाहिये !
श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज जी के श्री प्रवचन पियूष जी से
सप्रेम राम राम जी
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