Wednesday, November 24, 2021

धर्म Dharam Pravachan Piyush प्रवचन पियूष

धर्म


मनुष्य के जीवन का बहुत भाग आलस्य में व्यतीत होता है ! अतः हर समय धर्म का पालन करने को तैयार रहना चाहिये ! आत्मा का उत्थान करना चाहो, तो कार्य करने को तैयार रहो ! कोई काम कल को नहीं छोड़ रखना चाहिये ! एक पल कि किसी को खबर नहीं, तो कल कि क्या मालूम ? ' काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ' ! कच्चा मन आगे करने को टाल-टूल का संकल्प करता है ! कच्चा मन समय टालता है ! अच्छे कामों में देर नहीं करना, हिचकना नहीं ! जो वचन दिया उसका पालन करना, उसे करना ! वाणी का पालन करने से वाणी बलवती होती है ! 


मनुष्य को चैतन्य रहना चाहिये ! सत्संग में जाकर समझने कि चेष्टा करनी चाहिये | यही एक रहस्य है, उन्नति है !



श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज जी के श्री प्रवचन पियूष जी से 

Pravachan Piyush, प्रवचन पियूष


Page No.372

सजगता-Sajagta-Pravachan-Piyush-ji

 सजगता 


मनु ने कहा है कि ब्रम्ह-मुहूर्त में जागना चाहिये तथा उस समय धर्म, अर्थ तथा शास्त्र के तत्त्व का चिंतन करना चाहिये !


प्रातः काल उठना उपयोगी होता है ! ब्रम्ह-मुहूर्त में साधना करने से अधिक लाभ होता है, क्योंकि उस समय बाहर के विक्षेप नहीं होते तथा प्रकृति भी शांत होती है अर्थात वातावरण में विक्षेप नहीं होता ! आकाश में मानस-तरंग भी चलती है, जो वातावरण को खराब करती है, किन्तु प्रातःकाल अच्छे तरंगो को रोकने वाले तरंग कम होते है ! उस समय सारे बुरे तरंग शांत होते है ! इसलिये प्रातःकाल साधन के लिये बहुत लाभकारी है ! दिव्या-लोकों के नाद भी अवतरित होते है ! यह प्रातः समय ही सुनाई देते है, कोलाहल के समय नहीं ! उनको सुनने से बड़ा हर्ष होता है ! उनसे मन स्थिर हो जाता है, आत्मा जग जाता है !


साधना के लिये श्रम करना चाहिये ! अन्तः हम अन्य बातों के लिये भी श्रम करते है !


श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज जी के श्री प्रवचन पियूष जी से 

सप्रेम राम राम जी 


प्रवचन पियूष जी Page No.: 380

Pravachan Piyush ji Page No.: 380

सजगता-Sajgta-Shree-Pravchan-Piyush-ji

 सजगता 


यदि कभी जानकर या अनजाने से कोई भूल अथवा अपराध हो जाये, तो उसका प्रायश्चित करना चाहिये !  इससे अंतःकरण निर्मल हो जाता है और पाप का काँटा निकल जाता है ! स्वाध्याय, जप, उपवास आदि प्रायश्चित है ! जिनका ध्यान में मन नहीं लगता, उन को दस, इक्कीस, इकतीस लाख अथवा इससे अधिक जप करना चाहिये ! नाम का सवा करोड़ जप करने से तो वैसे ही मन शांत हो जाता है और मंत्र सिद्ध हो जाता है !


अपने कार्यों पर दृष्टी रखनी चाहिये ! इसके लिए प्रारम्भ में कुछ समय तक श्रम करना पड़ता है ! फिर यह स्वभाव बन जाता है, तथा इसके लिये श्रम नहीं करना पड़ता, ऐसी वृत्ति ही बन जाती है ! पर यह वे है कर सकते है, जिनके लगन अधिक है ! ऐसा सोचना चाहिये कि हमने जो साधारण ज्ञान विज्ञान प्राप्त किया, उसके लिये कितना श्रम किया और हमने इस कार्य के लिये कितना श्रम किया है ?



श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज जी के श्री प्रवचन पियूष जी से 


From Shree Pravachan Piyush ji 


Page No. 379

सजगता-Sajagta

सजगता 

जैसे गाड़ी चलाने वाला पथ पर दृष्टि रखता है, वैसे ही हमारी दृष्टि वृत्तियों पर होनी चाहिये | बुद्धि की विवेकवती-वृत्ति मार्ग पर रहनी चाहिये| यदि वह कभी मार्ग से गिर हो जाये, तो विचारना चाहिये की ऐसा क्यों हुआ ? दृष्टि ही ऐसी बना लाइन चाहिये की बिना विचारे ही अपने आप पता लग जाये की ऐसा क्यों हुआ ? इससे यह अपराध को ऐसे ही दिखा देगी, जैसे लैम्प चीज़ को दिखा देता है ! जो चीज़े संयम को बिगाड़ती है, उनके आगे दीवार खड़ी करनी चाहिये !

श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज जी के श्री प्रवचन पियूष जी से


सप्रेम राम राम जी