Sunday, February 20, 2022

प्रार्थना-के-प्रकार-Pratharna-Ke-Prakar-Shree-Swami-Satyanand-ji-Maharaj-ji

प्रार्थना के प्रकार 

१ आत्म-कल्याण की कामना से प्रार्थना। 

२ बिना स्वार्थ पर हित, पर सुख-स्वास्थ्य, परोन्नति और सफलता आदि के लिये प्रार्थना करना। ऊपर के दोनों प्रकार निष्काम प्रार्थना के परिचायक है । 

प्रार्थना के प्रकार, Pratharna Ke Prakar, Shree-Swami-Satyanand ji Maharaj ji
प्रार्थना के प्रकार, Pratharna Ke Prakar, Shree-Swami-Satyanand ji Maharaj ji


३ अपने और अपनों के सुख-स्वास्थ्य के लिये प्रार्थना करना। 

४ अपने और अपनों के धन, लाभ आदि के लिये प्रार्थना करना। 

५ अपने और अपनों के जय-विजय आदि के लिये प्रार्थना करना ! ये तीनों प्रकार, सकाम प्रार्थना के कहे जाते है ! 




Saturday, January 22, 2022

Guru Mahima-गुरु महिमा

Guru Mahima गुरु महिमा 


सद्गुरु आप समर्थ है, सन-मार्ग के बीच |

बचा कर मिथ्या से मुझे, हरे भाव सब नीच  ||


सद्गुरु की महिमा बड़ी, विरला जाने भेद |

भारे भव भय को हरे, और पाप के खेद ||


सद्गुरु जी की शरण में, मनन ज्ञान का कोष |

जप तप ध्यान उपासना, मिले शील संतोष ||


गुरु को करिए वन्दना, भाव से बारम्बार |

नाम से सुनौका से किया, जिस ने भव से पार ||


नाम रूप जिस का नहीं, है उस के सब नाम |

भेद सुगुरु से पाइए, ओंकार है राम ||


सद्गुरु चन्दन सम कहा, भगवद-प्रेम सुवास |

निश दिन दान करे उसे, जो जान आवे पास ||


Guru Mahima,गुरु महिमा, Swami Satyanand ji maharaj
Guru Mahima,गुरु महिमा, Swami Satyanand ji maharaj 


गुरु संगति में बैठिए, सीखिए भक्ति भेद |

सुनिए ज्ञान विचार को, पुस्तक दर्शन भेद |


लोभी दम्भी गुरु घने, मठधारी अनजान |

गद्दी की रद्दी है घने, उन में सार न मान ||


सुगुरु से यहाँ समझिए, ज्ञानी अनुभववान |

बोधक धर्म सुकर्म का, दाता ज्ञान सुध्यान ||


सतगुरु की पहचान यह, उपरति प्रेम विचार |

वीत-रागता सुजनता, रहित हठ पक्ष विकार ||


ऐसा गुरुवर जानिए, जंगम तीर्थ राज |

ध्यान ज्ञान हरी नाम से, सफल करे सब काज ||


Tuesday, January 11, 2022

sthitpragya-ke-lakshan-स्थितप्रज्ञ-के-लक्षण

 

 स्थितप्रज्ञ के लक्षण

Sthitpragya Ke Lakshan

अर्थ: 

अनेक प्रकार के ग्रंथो को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि, जब समाधि में संशयरहित अवस्था में अचल और  निश्चल सुस्थिर स्थित हो जायेगी, तब        ( तू )  सममनः स्थितिरूप योग को पायेगा !



sthitpragya-ke-lakshan-स्थितप्रज्ञ-के-लक्षण
sthitpragya-ke-lakshan-स्थितप्रज्ञ-के-लक्षण



व्याख्या:

अनेक प्रकार के मत-मतान्तर के ग्रंथो के सुनने से बहुत जन संशयशील हो जाते है, विपरीत पथ पर पड़ कर सन्मार्ग को खो बैठते है और उनमें सत्यासत्य का निर्णय करने का सामर्थ्य नहीं रहता ! 

इसलिए श्री भगवान ने अर्जुन को कहा - जब तेरी बुद्धि, पांथिक ग्रंथो के सुनने से विचलित हो गई हुई संदेह रहित समाधान स्थिति में अचल और निश्चल ठहर जाएगी तब तू समभावरूप कर्मयोग को पाएगा !

Sunday, January 9, 2022

sthitpragya-ke-lakshan-स्थितप्रज्ञ-के-लक्षण

 स्थितप्रज्ञ के लक्षण

Sthitpragya Ke Lakshan

अर्थ: 

जिस समय तेरी बुद्धि मोहमयी दलदल को सर्वथा तर जायेगी, तब ( तू ) सुननेयोग्य के और सुनेहुए के वैराग्य-विशेषज्ञान को प्राप्त होगा !




स्थितप्रज्ञ के लक्षण

स्थितप्रज्ञ के लक्षण



व्याख्या:

जब तक मोह से, आसक्ति से बुद्धि पार न पा जाये तब तक धर्म-कर्म के,  विवेक विचार के और परमार्थ तत्वादि के सुनने योग्य और सुने हुए वाक्यों के विशेष ज्ञान को,  यथार्थ मर्म को, समझना कठिन है ! इसलिए तत्वज्ञान प्राप्त करने के अर्थ वस्तुओ के मोह को, गहरी ममता को पार करना आवश्यक है ! 

Thursday, December 30, 2021

ध्यान में बैठने कि पूर्व तैयारी - Dhyan mein baithne ki purav taiyari - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush

ध्यान में बैठने कि पूर्व तैयारी 
Dhyan mein baithne ki purav taiyari 

ध्यान में बैठने के पूर्व उसके योग्य मनोभावना बनानी चाहिये ! उसके साधन है - 

१. सबसे प्रथम बैठने के समय आचमन करें, आँखों पर ठंडे पानी के छींटे दे, गर्दन था मुँह पर ठंडे हाथ फेरें ! इससे  मनोवृत्तियां शान्त होती है और चित्त स्थिर होता है !


२. बैठने का जो आसान हो तथा ग्रन्थ व मूर्ति रखने की जो चौकी हो, वह केवल उसी काम के लिये हो, उनको और किसी काम में न लाया जाये |


३. हो सके तो ध्यान का कमरा भी अलग ही नियत हो ! उसमे वीतराग पुरुषों के चित्र लगे हो, जिन्हें देखने से हमारी मनोभावना वैसी ही बन जाये !


४. ध्यान का समय नियत हो ! किसी भी कारण उसको आगे-पीछे न किया जाये ! ऋतू परिवर्तन व अपनी सुविधानुसार उसको बदल सकते है, पर जो एक बार नियत किया जाये, उसको नहीं बदला जाये ! यदि कोई प्रिय मित्र अथवा निकट का सम्बन्धी भी उस समय मिलने आये, तो उनको नम्रता से कह दो कि यह हमारे ध्यान का समय है ! किसी और समय पर उनको आने को कह दो पर ध्यान का समय न टालो ! इस नियम कि अवहेलना करने से मनोभावना शिथिल पड़ जाती है और सफलता दूर जा पड़ती है ध्यान में नागा भी कभी नहीं हो !

ध्यान में बैठने कि पूर्व तैयारी  Dhyan mein baithne ki purav taiyari

ध्यान में बैठने कि पूर्व तैयारी 
Dhyan mein baithne ki purav taiyari 



५. ध्यान में बैठने के पूर्व देवता को उसका नाम लेकर आव्हान करो और नमस्कार करके उसका पूजन करो और ध्यान में यह भावना बनाये रखो कि मेरा देवता मेरे सम्मुख उपस्थित है !


६. ध्यान में जब बैठो तो अनुभव करो कि प्रभु कि कृपा मुझ पर अवतरित हो रही है ! ऐसा करने से बहुत लाभ होता है !


Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush
 ध्यान में बैठने कि पूर्व तैयारी - Dhyan mein baithne ki purav taiyari


साधना-सत्संग होशियारपुर 

दिनांक २५-१२-१९४०

Wednesday, December 29, 2021

स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush

स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti 

अजपा जाप वह है जिसमे वाणी से जाप न किया जाये, किन्तु जप हो रहा हो ! जब ऐसा हो तो अर्थ यह है कि आत्मा बोल रहा है ! आत्मा में बोलने की शक्ति है ! देह में कैद होने पर आत्मा इन्द्रियों  द्वारा विषय ग्रहण करता है और स्थूल अंगो में तरंगे पैदा करता है और जिव्हा इत्यादि से शब्द आदि उच्चारण होता है ! पर देह से पृथक होकर आत्मा सूक्ष्म प्रकृति में संकल्प द्वारा क्रिया उत्पन्न करता है ! पतंजलि महर्षि का वाक्य है कि आत्मा अपने संकल्प द्वारा चित्र पैदा कर लेता है ! दिल, फेफड़े इत्यादि स्वभाव से है, संकल्प से नहीं ! ऐसे ही आत्मिक इच्छा स्वभाव से है, संकल्प से नहीं ! यह बात ठीक नहीं है कि हम केवल बुद्धि और इन्द्रियों से ही काम ले सकते है ! हम इनसे भी परे जा सकते है ! बार बार आत्मा का उद्दबोधन करना चाहिये ! 

स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush
स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush


मैं सत, नित्य, शुद्ध, चैतन्य, शक्तिमय आत्मा हूँ ! ऐसा बार बार चिंतन करना चाहिये ! इससे आत्मा प्रबुद्ध और जाग्रत होता है  और स्वरुप में चमक उठता है ! 

Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush

स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush

 स्वात्म-प्रतीति


अपने आप की प्रतीति होने को 'स्वात्म-प्रतीति' कहते है ! अपने अस्तित्व को ऊँचा करना साधना में लाभदायक है ! आत्मा को नीचा नहीं करना चाहिये | यह उसका अपमान है और इससे आत्मा दब जाता है ! यदि पहले सफलता न हो, तो अपने आपको दुर्बल नहीं समझना चाहिये ! मनु महाराज कहते है की अन्त समय तक सफलता की आशा करते रहना चाहिये ! आत्मा के अस्तित्व में पूर्ण विश्वास होना चाहिये ! विश्वास और ढृढ़ धारणा से ही आत्मा अभिव्यक्त होता है ! आत्मा की अभिव्यक्ति ज्ञाता और ज्ञेय भाव से नहीं होती, अपितु ऐसी प्रतीति होती है की मैं हूँ ! यह अभिव्यक्ति ऐसे भी होती है, जैसे मैं आकाश में हूँ, मेरी देह नहीं है, वह मेरी देह पड़ी है, मैं देह से भिन्न हूँ, मेरे हाथ-पाँव बड़े बोझल हो गये है, मेरा शरीर सुन्न हो रहा है, मेरा शरीर छोटा सा हो गया है, मेरा मन बड़ा विशाल है, इत्यादि, इत्यादि !



स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush
 स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush


यह आवश्यक नहीं कि सब साधकों को सब प्रकार कि प्रतीति हो ! किसी को किसी प्रकार कि अभिव्यक्ति होती है, किसी को किसी प्रकार की ! यदि किसी को इनमें से किसी प्रकार की भी प्रतीति न हो और उसको एकाग्रता हो जाती है, तो उस को यह नहीं समझना चाहिये की मुझ में कोई कमी है या मेरी उन्नति नहीं हो रही है ! उसका आत्मा भी जाग्रत हो रहा है, इस बात में उसे विश्वास रखना चाहिये !