Wednesday, December 29, 2021

स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush

 स्वात्म-प्रतीति


अपने आप की प्रतीति होने को 'स्वात्म-प्रतीति' कहते है ! अपने अस्तित्व को ऊँचा करना साधना में लाभदायक है ! आत्मा को नीचा नहीं करना चाहिये | यह उसका अपमान है और इससे आत्मा दब जाता है ! यदि पहले सफलता न हो, तो अपने आपको दुर्बल नहीं समझना चाहिये ! मनु महाराज कहते है की अन्त समय तक सफलता की आशा करते रहना चाहिये ! आत्मा के अस्तित्व में पूर्ण विश्वास होना चाहिये ! विश्वास और ढृढ़ धारणा से ही आत्मा अभिव्यक्त होता है ! आत्मा की अभिव्यक्ति ज्ञाता और ज्ञेय भाव से नहीं होती, अपितु ऐसी प्रतीति होती है की मैं हूँ ! यह अभिव्यक्ति ऐसे भी होती है, जैसे मैं आकाश में हूँ, मेरी देह नहीं है, वह मेरी देह पड़ी है, मैं देह से भिन्न हूँ, मेरे हाथ-पाँव बड़े बोझल हो गये है, मेरा शरीर सुन्न हो रहा है, मेरा शरीर छोटा सा हो गया है, मेरा मन बड़ा विशाल है, इत्यादि, इत्यादि !



स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush
 स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush


यह आवश्यक नहीं कि सब साधकों को सब प्रकार कि प्रतीति हो ! किसी को किसी प्रकार कि अभिव्यक्ति होती है, किसी को किसी प्रकार की ! यदि किसी को इनमें से किसी प्रकार की भी प्रतीति न हो और उसको एकाग्रता हो जाती है, तो उस को यह नहीं समझना चाहिये की मुझ में कोई कमी है या मेरी उन्नति नहीं हो रही है ! उसका आत्मा भी जाग्रत हो रहा है, इस बात में उसे विश्वास रखना चाहिये !

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