स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti
अजपा जाप वह है जिसमे वाणी से जाप न किया जाये, किन्तु जप हो रहा हो ! जब ऐसा हो तो अर्थ यह है कि आत्मा बोल रहा है ! आत्मा में बोलने की शक्ति है ! देह में कैद होने पर आत्मा इन्द्रियों द्वारा विषय ग्रहण करता है और स्थूल अंगो में तरंगे पैदा करता है और जिव्हा इत्यादि से शब्द आदि उच्चारण होता है ! पर देह से पृथक होकर आत्मा सूक्ष्म प्रकृति में संकल्प द्वारा क्रिया उत्पन्न करता है ! पतंजलि महर्षि का वाक्य है कि आत्मा अपने संकल्प द्वारा चित्र पैदा कर लेता है ! दिल, फेफड़े इत्यादि स्वभाव से है, संकल्प से नहीं ! ऐसे ही आत्मिक इच्छा स्वभाव से है, संकल्प से नहीं ! यह बात ठीक नहीं है कि हम केवल बुद्धि और इन्द्रियों से ही काम ले सकते है ! हम इनसे भी परे जा सकते है ! बार बार आत्मा का उद्दबोधन करना चाहिये !
स्वात्म-प्रतीति - Swaatam Pratiti - Shree Swami Satyanand ji Maharaj ji - Pravachan Piyush |
मैं सत, नित्य, शुद्ध, चैतन्य, शक्तिमय आत्मा हूँ ! ऐसा बार बार चिंतन करना चाहिये ! इससे आत्मा प्रबुद्ध और जाग्रत होता है और स्वरुप में चमक उठता है !
No comments:
Post a Comment
Please, Write your valuable comments..